Wednesday, 23 August 2023

चटकी हुई ऐनक

 


 

अटूट पाषाण की अदृश्य दरार दिखलाती

मुस्कान के नेपथ्य अंतर्मन की सिसकी

बिन जल व्यय जलचर का शांत विच्छेद

खंडित दर्पण, प्रतिबिम्ब दुनिया है जिसकी

नभ हुआ रत्न जड़ित, रश्मि सदैव सतरंगी

अंश ब्रह्माणड के हुए, जर्जर सम्पूर्ण सृष्टि

हाशिये के दर्शन कराती चटकी हुई ऐनक

दीखता है जग सबको, जैसी जिसकी दृष्टि

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