प्रतिबिम्ब है मेरा,परन्तु कुछ अपरिचित सा
मुस्कराता है निरंतर, उसका मन पारदर्शी है
क्षण भर जीवित,वर्तमान के पश्चात ओझल
भूतकाल कल्पित, क्षण भंगूर जीवन
जैसे रेगिस्तान की दोपहर में एक बूँद
रेत पर रेंगती और वाष्प में लीन
पुनः प्योदी में पिरोई सी, पराई हो गई
जीवन है अगिनत “अभी “ का समूह
उपरान्त के पश्चात सब मन के प्रतिबिम्ब
और भूत के पहले के विचार केवल मन की परछाई
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