लोभ से उपजित भय
सिंघासन से उत्कलन का भय
महत्वकांक्षा और अभिलाषा का सिंघासन
अर्जित के संधारण की अभिलाषा
निरंतर अधिक अपेक्षा की महत्वकांक्षा
ये समस्त मन के भाव बुनते षड़यंत्र
और अवतरित होती मन की मेनका
आत्मिक तप को भंग करती
नृत्य एवं भंगिमा का सम्मोहन
थिरकती हुई कल्पना
नव स्वर्ग निर्माण का अवरोधक बन
एक नव लोभ की उत्पत्ति
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