अंकुरित पलकों के अर्ध स्वपन
उमड़े पुष्प को नोचता प्रहार
रीढ़ को तोड़ता हुआ इक घाव
और हाँफ़्ती हुई जड़ के अवशेष
कुछ टूटे हुए कांटे गिरे हैँ
कुछ मेरी जान है घुली हुई
तेरी यादों की बेरहम मिट्टी में
जो देती है हरदम आशा को पनपने
बड़ा जटिल है अवगुणठित प्यार
No comments:
Post a Comment