Friday, 9 February 2024

 अंकुरित पलकों के अर्ध स्वपन

उमड़े पुष्प को नोचता प्रहार

रीढ़ को तोड़ता हुआ इक घाव

और हाँफ़्ती हुई जड़ के अवशेष

कुछ टूटे हुए कांटे गिरे हैँ

कुछ मेरी जान है घुली हुई

तेरी यादों की बेरहम मिट्टी में

जो देती है हरदम आशा को पनपने

बड़ा जटिल है अवगुणठित प्यार


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