Friday, 8 March 2024


यूँ तो कब के भुला देते हम अकेलेपन के दर्द को 

ग़र वो मासूमियत से अक्सर हमारी खैरियत ना पूछते



 बेरुमानी होकर वो हमारी शायरी सुन बैठे

दाद दर असल तो उनके अश्क़ दे गए

फ़ौकीयत तो अलफ़ाज़ को दी मुशायरे में

वो तन्हाई में कुछ ख़ामोश आह दे गए


No comments:

Post a Comment