Monday, 1 July 2024

तितली

 


तितली, निद्रा में सिमटी ऐसी

अपने वर्ण के कपाट बंद कर

सूर्योदय की दस्तक से फुर्र हो

पुनः पुष्प सिंघासन पर विराजमान

सजग और जटिल पहेली रूप में

अपने रंग बिखेरती स्पष्ट औ निडर

काली झूलती अथखेली खेलती

सतरंगी आकाश को धर पर लाती

पकड़ती हथेली पर इंद्रधनुष दे

अपनी स्वतंत्र वायु में ओझल

हरदम एक नयी डाली सजाती

वहाँ पुष्प में नया स्वप्न उगाती

मधु यौवन को संजोती इतराकर

चुलबुली और अति जीवन्त

स्त्री -वह जो तिमिर में जुगनू बन जाती

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