श्वास की आहट में चीत्कार
हिलते पर्दों में विलीन साये
तिड़कती रात के तिमिर में
कितने प्रेत हैँ मन ने पाए.
आँगन पार है राहत की ड्योढ़ी
वहां माँ की ओट में साहस बिखरे
बीच सघन औ विकराल आँगन में
अवगुणठित भय सुनहरी रात में निखरे.
जीवन काल है हमारा ये आँगन
नीरूपाय मन और साहस का मंथन
विशाल रूप लेती भाटा की क्यारी में
विजयी ध्वज का साहस बीज में स्पंदन.
No comments:
Post a Comment