Sunday, 19 February 2023

 

जीवनार्थ का ज्ञान

तब हुआ जब

अर्थी की पहचान

जीवित भीड़ से हुई.

एक गलत लाश पर अफ़सोस

करते हुए दिखा

की भीड़ अजनबी थी

बगल वाली लाश

कुछ पहचानी लगी

भीड़ भी देखी हुई सी थी.

घड़ी, फ़ोन और बातचीत में गुम

कोई चिंता में कोई मस्ती में

किसी को जल्दी लौटना था

पर लाश सी कोई ना बोला

ना जाने वो रुदन वो स्यापे

कहाँ खो गए हैँ

लोग बहुत अब रोते नहीं हैं

दुख सिर्फ RIP🙏 बन गया है

पता नहीं लाश गलत होती हैँ

या फ़िर ये दुनिया

जिसे हम जीवन कहते है

पहचान लाश की नहीं

लोगों की होती है

जब किसी की माँ जलती है.

No comments:

Post a Comment